गद्दार
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आधुनिक होते वक्त में
अजब दास्ता है -----
आदमी -आदमी नहीं
अब तो गद्दार है ----
व्यंजनाओ के स्तर पर
गद्दार वो अभिव्यक्ति है
जो खुद को ज़िंदा रखने के लिए
जमीर को मार देती है
कर जाती है
विश्वासों का दमन
और लिख जाती है
गद्दारी की क्रान्ति
मित्रो ---
गद्दारी वो निर्वस्त
भावना है जो
खुद को उचित बताती है
पर उसे नहीं मालुम
ये वो सिद्धांत है
जो गिरते हुए नित्य
आयाम है ---
अभिव्यक्ति के सोपान पर
बिखरा हुआ वो लम्हा
जो तिरस्कार के योग्य है
इस लिए मेरा ये कहना है
गद्दारी वो
शब्द है
जिसे स्वीकारना
असत्य है ------- ?????
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