भीगे मर्म
*********************
मार्म जब भीग जाते है
तुम बहुत याद आते हो
खो जाते हो मेरे विचारों में
फिर बहेक - बहेक से जाते हो
मै मर्म को भीगने से बचाता हूँ
तुम बरस से जाते हो --
मुझे अच्छा लगता है
तुम्हारा बरसना
मेरा भीगना ---
अंत में प्रत्यंचा
पर गुनगुनाता हूँ---तुमको
खुद को ----? कल्पनाओं के
उस शिखर पर जहां
बादल आरम्भ होते है
तुम आकार बदलने लगते हो
मुझे भय लगता है की कही
इंद्र धनुष की खूबसूरती
तुम्हे मुझे दूर ना कर दे
दमित भाव लिए मै
समय को रोकना चाहता हूँ
मुझे पता है
काल को वश में नहीं किया जा सकता
पर मेरा प्रयास जारी है --रहेगा --
क्यों की मेरा मर्म भींग चुका है ---
उसकी सुलगन
धुवा बन कर मेरे पूरे अस्तित्व को
जला रही है ---
मुझको शीतलता की उम्मीद है --?...
No comments:
Post a Comment