नारी की पीड़ा
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मेरे शहर में नारी
आज भी सुरक्षित नहीं है ---
जर्जर हो चुके पल्लू के बीच
दुर्भाग्य नापती हुई
वो ------
निर्विकार द्वंद को
जीते हुए ---
वजूद को परे धकेलते हुए
निर्माण की इकाई
बनते हुए --
अपने धर्म को
उन्माद के चरम पर
मंथन की सतह पर ---
सच है ----
मेरे शहर में नारी
आज भी सुरक्षित नहीं है --
????????
behreen prstuti...
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