अनजान पथ पर
भटकते हुए फिर
गुमशुदा ख्याल आया
मखमली जिस्म और गेसुओ
की सौगात आज
फिर याद आया
हम तो भटके थे उस राह में
फिर दुबारा हमें आज फिर वो
ख्याल आया -------
करवटे बदल रही है
रूहे शबनम कोई ----
जमी से भटक कर
अब --आसमान से हो आया ---
अनजान पथ पर
भटकते हुए फिर
गुमशुदा ख्याल आया
सूरज जब चरम पर होता है
दिशाए भ्रमित करती है मुझे
सोंचता हूँ --तपन की आंच
और
स्नेहिल स्पर्श क्या होता है ---?
वक्त गुजरता है -----
अति आधुनिक हो चले हम और तुम
सूरज के अंतिम लम्हों तक
साथ चलने की कोशिश करते है
गंभीर होते समय के बीच
मुझे बहती दोपहर में
पलो को अपनों से ही
क़त्ल होते देखता हूँ ----?
वीरान समय का जिक्र
जब कभी आया -----
सच तुम्हारा साया
तभी नजर आया ------
लोग कहते है की
साया अस्तित्व से
अलग नहीं होता
मुझे पता है ----
सूरज जब चरम पर होता है
साया भी बढ़ा होता है ---
कम रोशनी
कद को घटा देती है
फिर वीरान समय
की बात -----?
दरकता है समय का
वो चक्र भी ---
जब सुरमई शाम
योवन पर होती है -----
आयता कार आकार में
साए का कद नहीं देख पाता हूं ---
सच है ----
वीरान समय का जिक्र
जब कभी आया -----
सच तुम्हारा साया
तभी नजर आया ------?????????????
मै एक विचार हूँ ---
जो बदल - बदल जाता हूँ --
रात जब गहराने लगे ---
बंद चाहत के आकाश में
परिंदे पंख फेलाने लगे
एक चाहत का दामन पकड़ कर
तुम फिर आंदोलित करती हो
हम निर्विकार
वही---उस पथ पर
खडा
प्रतीक्षा में
बंद मुट्ठी को और कस कर
बंद करता हूँ
मुझे पता है
मै एक विचार हूँ ---
जो बदल - बदल जाता हूँ ------