Thursday, October 20, 2011

तुम्हारी आँखों में


तुम्हारी आँखों में
 जब भी देखा 
अजब सा संसार देखा -------
कभी इकरार तो कभी -----
इनकार देखा ------
हम तो खड़े थे राहो पर 
मंजर वो अनोखा 
 तकरार का देखा ---------

Wednesday, October 19, 2011

कतरा -ए- शबनम


क्या कहूँ दीवानगी की दास्ताँ 
वो वक्त का दरिया भी खूब था 
कतरा -ए- शबनम  गिरा कही 
 किसी की  आँखों से -----
अपना ही अक्स देख कर 
शर्मा  गया हूँ आज फिर मै--

खुद ही


सरहदों की सीमाओं से गुजर जाता हूँ -
डूबता हूँ तो कभी  सिहर सा जाता हूँ ---
जीता हूँ जब कभी उस पल को देख कर 
मै खुद ही अपनी  खोज में खो जाता हूँ ----

Saturday, October 15, 2011

नारी की पीड़ा


नारी की पीड़ा 
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मेरे शहर में नारी 
आज भी सुरक्षित नहीं है ---
जर्जर हो चुके पल्लू  के बीच
दुर्भाग्य नापती हुई 
वो ------
निर्विकार द्वंद को 
जीते  हुए ---
वजूद को परे धकेलते हुए 
निर्माण की इकाई 
बनते हुए --
अपने धर्म  को 
उन्माद के चरम पर 
मंथन की सतह पर ---
सच है ----
मेरे शहर में नारी 
आज भी सुरक्षित नहीं है --
????????

Friday, October 14, 2011

द्वंद


द्वंद 
*******
मेरे अंदर होने वाला द्वंद 
तुम्हारे और मेरे 
अनुपूरक संबंधो को 
गढ़ते है ------
जब अभिव्यक्ति खामोश होने 
लगती है ----
अँधेरे छटपटाते  है ----रौशनी 
की दरकार में ------
ऐसे में मेरा फिर 
अक्स वजूद खो देता  है -------????

Saturday, October 8, 2011

गुमशुदा ख्याल


अनजान पथ पर
भटकते हुए  फिर
 गुमशुदा ख्याल आया
मखमली जिस्म और गेसुओ
की सौगात आज
फिर याद आया
हम तो भटके थे उस राह में
फिर दुबारा   हमें आज फिर वो
ख्याल आया -------
 करवटे बदल रही है
रूहे शबनम  कोई ----
जमी से भटक कर
अब --आसमान  से हो आया  ---
अनजान पथ पर
भटकते हुए  फिर
 गुमशुदा ख्याल आया
 

Friday, October 7, 2011

क़त्ल

सूरज  जब चरम पर होता है
दिशाए भ्रमित करती है मुझे
सोंचता हूँ --तपन की आंच
और
स्नेहिल स्पर्श क्या होता है ---?
वक्त गुजरता है -----
अति आधुनिक हो चले हम और तुम
सूरज के अंतिम लम्हों तक
साथ चलने की कोशिश करते है
गंभीर होते समय के बीच
मुझे बहती दोपहर में
पलो को अपनों से ही
क़त्ल होते देखता हूँ ----?

Tuesday, October 4, 2011

वीरान समय

वीरान समय का जिक्र
जब कभी आया -----
सच तुम्हारा साया
तभी नजर आया ------
लोग कहते है की
साया अस्तित्व से
अलग नहीं होता
मुझे पता है ----
सूरज जब चरम पर होता है
साया भी बढ़ा होता है ---
कम रोशनी
कद को घटा देती है
फिर वीरान समय
की बात -----?
दरकता है समय का
वो चक्र भी ---
जब सुरमई शाम
योवन पर होती है -----
आयता कार आकार में
साए का कद नहीं देख पाता हूं ---
सच है ----
वीरान समय का जिक्र
जब कभी आया -----
सच तुम्हारा साया
तभी नजर आया ------?????????????

Monday, October 3, 2011

विचार

मै एक विचार हूँ ---
जो बदल - बदल जाता हूँ --
रात जब गहराने लगे ---
बंद चाहत के आकाश में
परिंदे पंख फेलाने लगे
एक चाहत का दामन पकड़ कर
तुम  फिर आंदोलित करती हो
हम निर्विकार
वही---उस पथ पर
खडा
प्रतीक्षा में
बंद मुट्ठी को और कस कर
बंद करता हूँ
मुझे पता है
मै एक विचार हूँ ---
जो बदल - बदल जाता हूँ ------