विष कन्या
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समय का ये केसा फेर है
आज सुलोचना सब तरफ व्याप्त है
कम उम्र में विष का पान ही उनका आधार है
दुश्मनों को रास्ते से हटाने के लिए
ये कायर निति का अंदाज है ---
विष कन्या होती नहीं दोस्त
ये तो मानव का निर्माण है -----
मंथन की सतह पर आज भी
लिंग भेद से उपजी ----
असमानता , अपमान ,उत्पीडन और उपेक्षा
पूरी सभ्यता और नस्ल का
घातक अंदाज है ---
कोन कहता है --सभ्यता थी मर गयी
इस जमी पर दफन हो गयी
मुझे तो इकाई से नहीं
उनके निर्माण से आपत्ति है ----
इस लिए कहता हूँ सोंच को मारो ---
ये अभिशाप है ---------
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* सुलोचना (विष कन्या ---गंदर्भ चित्र ग्रीव की पत्नी )