vartika
Tuesday, August 2, 2011
मुसाफिर
मुसाफिर
***************
मुसाफिर लगता हूँ आज
सफ़र अनजान मन बेखबर
डगमगाते कदम और बेचारगी
रास्ते पथरीले , बोझिल तन -मन
अंत हिन् सफ़र और मंजिल बहकी सी
हाथो के आयतन अब कमजोर हो चले है
मुझे मंजिल नहीं ---अब रास्ते दिखते है -----
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment