हाथ की लकीर और मेरा भ्रम
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श्रीकृष्ण ने गीता में
अर्जुन से कहा कि
हमारा भाग्य
हमारे कर्मों से
बनता है और
कर्म हम हाथों
से ही करते हैं
लकीरे किस्मत नहीं बनाती
वक्त लगता है
हाथ की लकीरों को
आकार देने में
मजबूत ताकत और संघर्ष
आधार है इसका
तुम व्यंजनाओ को मर्म
समझते हो ----
हमने श्रम से बदला है इसे
मुझे अज्ञात में रहने की आदत है
तुम ज्ञात की बात करते हो
लकीरों का क्या --
यही तो कहते हो
समय का चक्र का
दर्शन समझाते हो ----दिशा भ्रम
फेलाते हो ----
हम पूछते है क्यों --?
तुम बहलाते हो -----
तब तक ---
जब तक हम
भ्रमित ना हो जाए --?
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