शहीद
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प्रश्नों की वेदी पर
चल चल कर रुक जाता हूँ
डरता जब मौत से फिर
क्यों ये कह जाता हूं -----
दर्द मर्म का जब उभरा तब
चिंतन को लिख जाता हूँ ----
है व्याप्त चेतना का संचार
तब ये कह जाता हूँ ------
उठो प्रेम-विरह से अब
समय तुम्हे खोजता है
रक्त जमे इससे पहले
क्रान्ति पथ खोलता है
उम्मीदों के दिए बुझ ना पाए
ऐसा कुछ निर्माण करो ---
देश भक्त थे तुम अब मत अभिमान करो
नमन सब वीरो को जो
डर ना सके फिर मौतों से
हम निर्जन महल के बंद कक्ष
मौत से क्यों डरे हुए ---?
इतना डर व्याप्त जब तो
एक सलाह अब देता हूँ
वीरो की कर्म भूमि
में आगे आओ और चलो
डर इतना ही है तो फिर
आओ और शहीद बनो ----
--------------------------(मेरा सादर नमन उन वीरो को जिन्होंने अपने देश के लिए मौत को गले लगा लिया और शहीद हो गये )
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