Friday, August 12, 2011

आजादी

आजादी 
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फिर आ गया  आजादी का दिन ---हम मस्त ---बिंदास ---उद्घोष करते हुए चिल्लाते हुए घूम रहे है सड़को पर की हम आजाद है ---हमने गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया है ---अब हम आजाद है -----पर रुको सोंचो ----आज स्वतंत्रता  पर क्या वाकई हम इसका अर्थ समझते हैं या यह छलावा मात्र है. सवाल दृष्टिकोण का है. -----क्या हम अपनी बुनयादी जरूरतों को  पा चुके है ---शिक्षा --स्वास्थ ----रोटी ---रोजगार ---आवास -----सब कुछ जो प्राथमिक जरुरत है --? ये सच है की आज गरीब व भूखे व्यक्ति हेतु आजादी और लोकतंत्र का वजूद रोटी के एक टुकड़े में छुपा हुआ है तो अमीर व्यक्ति हेतु आजादी और लोकतंत्र का वजूद अपनी शानो-शौकत, चुनावों में अपनी सीट सुनिश्चित करने और अंततः मंत्री या किसी अन्य प्रतिष्ठित संस्था की चेयरमैनशिप पाने में है। यह एक सच्चायी है कि दोनों ही अपनी वजूद को पाने हेतु कुछ भी कर सकते हैं। भूखा और बेरोजगार व्यक्ति रोटी न पाने पर चोरी की राह पकड़ सकता है या समाज के दुश्मनों की सोहबत में आकर आतंकवादी भी बन सकता है। इसी प्रकार अमीर व्यक्ति धन-बल और भुजबल का प्रयोग करके चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित कर सकता है। यह दोनों ही लोकतान्त्रिक आजादी के दो विपरीत लेकिन कटु सत्य हैं। फिर भी खुश रहो मित्रो हम आजाद है -----?

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