Saturday, October 15, 2011

नारी की पीड़ा


नारी की पीड़ा 
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मेरे शहर में नारी 
आज भी सुरक्षित नहीं है ---
जर्जर हो चुके पल्लू  के बीच
दुर्भाग्य नापती हुई 
वो ------
निर्विकार द्वंद को 
जीते  हुए ---
वजूद को परे धकेलते हुए 
निर्माण की इकाई 
बनते हुए --
अपने धर्म  को 
उन्माद के चरम पर 
मंथन की सतह पर ---
सच है ----
मेरे शहर में नारी 
आज भी सुरक्षित नहीं है --
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