कल स्तम्भ में श्री सतीश शर्मा जी ने अंग्रेजी का हिंदी पर बढ़ता प्रभाव पर चर्चा की थी ! -----रात सोंचता रहा हिंदी परिवार में जनम लेने के कारण उसकी पीड़ा और अंग्रेजी के प्रति युवा पीढ़ी का झुकाओ मन को रास नहीं आया ! किसी कवि की चंद पंक्तिया याद आ गयी -----
कत्सित अपराधो की आंधी किस सीमा तक जाएगी ,
इस आंधी में तो स्वदेश की संस्कर्तिया मर जाएगी !
ओ समाज के पहरे दारो , रोको ना तूफानों को ,
बचा सको तो अभी बचा लो भटक रही संतानों को !!
मे हाला की मानसिक रूप से पुरातन वादी या रुढी वादी मानसिकता पर विशवास नहीं रखता ! चेतना वेर्त्मान के साथ चलने को मजबूर करती है किन्तु पुरानी परम्पराओं और सांस्क्रतिक मूल्यों के साथ समझोता नहीं कर सकता में विरासतीय सामाजिक संरचना में नग्नता के खिलाफ हू !सांस्क्रतिक , सामाजिक ,राजनेतिक और आर्थिक संरचना में हो रहा नंगा नाच का में खुल कर विरोध करता हू !हमारे पुरोधा मित्रो से अनुरोध है की वो कुछ एसा वातावरण बनाए जिससे -पूरब को पूरब ही रहने दे ,उसे पश्चिम ना बनाए एक कवी की अल्पना की -------
पश्चिम की आंधी चली पूरब के आकाश ,
नग्नं सभ्यता हो गई , एसा हुआ विनाश !..
ध्वस्त हुई सद्द्व्रतिया , अस्त हुए संस्कार ,
भूल गयी अब पीढिया सब आचार विचार !
हमें इस व्यचारिक अभिव्यक्ति का मंथन करना है तभी समाज का एक सकारात्मक रूप पाया जा सकता है !
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