अवसर था पुराने विद्यालय का
वार्षिक समारोह
हम भी आमंत्रित मित्रो ---
सभागार
खचा-खच भरा हुआ --
वक्ताओं ने ---
मुह खोला ---
फिर बोला
शिक्षा बुनियादी
जरुरत है -----?
हमें संस्कारगत शिक्षा
पर जोर देना ही ---
परम कर्त्तव्य है ----
हमने इतनी
योजनाओं को बोया ---
घन से ढ़ोया---
बड़े प्रयोग किये है --
इसी लिए ----
आज खड़े है ------
अरे बच्चो----
जीरो का
आविष्कार हमने ही किया है ---
तमाम बाते ----
खामोशी से
सुनी मैंने ---
मन बहुत खुश था --
अतीत कितना
विवेकी था --
वर्तमान भी विवेकी है ---
भविष्य तो --
नया इतिहास लिखेगा ----
तभी मित्रो एक घटान
घटी ----
समारोह में
दस लाख का अनुदान
वो भी ---
गडित विषय पर ---
तालियों के मध्य --
मै भी आनंदित ---
सोंचा -----
बच्चो से दस लाख लिखवाऊ
मजाक में
पास बेठे बच्चे से कहा
दस लाख लिखो ---
उसका कहना था --
इकाई - दहाई- से अधिक
अभी ---मुझे
कुछ नहीं आता है ---
मेने कहा ---
तो दस लाख क्या है ----
उसने मासूमियत से कहा ---
सार्टिफिकेट से हमारा
गहरा नाता है ----
अंको की गड़ना
से मुझको क्या करना
नेताओं का तो ये मंथन
पुराना है ---
ये तो एक फसाना है
मुझे अंक की जरुरत नहीं ---
बस इकाई से ही ---
अपने को बहलाना है ----?
No comments:
Post a Comment