गूंगी होती आवाजो में
गम होती उन रातो में
एक रौशनी तो आई थी
रूह को पकड़ कर ---
जिस्म से वो टकराई थी
देखो वो रात फिर आई थी
बंद मुठी में सारे लोग
आतिश पस्त थे ---
होठो को अब छूने की
गूंगी होती आवाजो में
गम होती उन रातो में
एक रौशनी तो आई थी
रूह को पकड़ कर ---
जिस्म से वो टकराई थी
देखो वो रात फिर आई थी
बंद मुठी में सारे लोग
आतिश पस्त थे ---
होठो को अब छूने की
वो रात आई थी ----
नकाब में ना कोई जादू था
मासूमियत -ओ- मजलूम था
फिर भी हमदम हर उस
अक्स में देखो
वो रात आई थी ---
मानता हु आज तुम
बेशकीमती , हसीन -ओ- तरोताजा थी
खून -ओ- पसीने के बीच
मेरे अजीज ----
ये सच है वो रात फिर आई थी -------! ----
नकाब में ना कोई जादू था
मासूमियत -ओ- मजलूम था
फिर भी हमदम हर उस
अक्स में देखो
वो रात आई थी ---
मानता हु आज तुम
बेशकीमती , हसीन -ओ- तरोताजा थी
खून -ओ- पसीने के बीच
मेरे अजीज ----
ये सच है वो रात फिर आई थी -------!
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