सर्व प्रथम संसार की सभी बुजुर्ग महिलाओं और व्यक्तिओ के प्रति सादर नमन जिनके द्वारा जाने - अनजाने में सद विचारों की महिमा छोटे -छोटे कथानक के रूप में अपने आने वाली संततियो के मानस पटल पर प्रवाहित की जाती रही है ! यद्यपि उन कथा संसार का प्रभाव बचपन के समय शायद उतना सारगर्भित नहीं होता जितना की अनुभव एवं बढती आयु के साथ !
बचपन की वो मधुर यादे जो कथानक के रूप में हम सभी को आज जितना रोमांच पैदा करती है उतना बाल्यावस्था में भी !फर्क सिर्फ उसकी गहरी और गंभीर भावनाओं को समझने का जो शायद वास्तविक धरातल पर आयु के एक पडाव बाद ही आत्मसात की जा सकती है !
जीवन की इस आपा -धापी में हर एक वो रात जब माताए या वो बुजुर्ग जो बच्चो के आत्मीय होते है , बच्चो के समुख एक कुशल कहानीकार के रूप में एक अलग संसार की रचना कहानी के रूप में करते है ! बच्चे उसे सरल रूप में लेते है ! एक अक्स आप के साथ साझा करना कहता हू------
गर्मी की उस रात नानी ने बच्चो को सुलाने के लिए कहानी सुनानी आरम्भ की ------परिवार में एक व्यक्ति अपने पुत्र के साथ शान्ति से रहता था ! ये घटना तब की है जब पुत्र छोटा था तभी दरवाजे पे पिता के कोई मित्र आए कुछ देर वार्ता करने के उपरान्त वो चले गए ! बच्चे ने अपने पिता से पूछा --पिता जी कौन आया था ? पिता जी का जवाब मेरे मित्र मिलने आये थे ! बच्चे ने फिर पूंछा --- पिता जी कौन आया था पिता का जवाब की फिर वही पुनरावृति ------समय - समय पर बच्चे दुवारा उसी प्रश्न की पुनरावृति----- पिता दुवारा वाही जवाब ! परिवर्तेंशील समय ने करवट ली ! पिता बुजुर्ग हो गए , बच्चा व्यस्क ! एक दिन व्यस्क बच्चे का कोई मित्र मिलने आया ! बुजुर्ग पिता ने पूंछा ---बेटा कौन आया है ? पुत्र --जी मेरा मित्र है ! कुछ समय उप्तांत पिता ने फिर पूंछा बेटा कौन आया था ? पिता दुवारा प्रश्न की पुनरावृति -पुत्र- नाराज -- कितनी बार बताऊ मेरा मित्र आया था ! आपके पास क्या कोई काम नहीं है ?
कथानक छोटा किन्तु सार गंभीर ! आज समाज में अक्सर देखने को मिल रहा है (जब की बच्चा और बुजुर्ग एक समान ) हमारी युवा पीढ़ी क्या अपने दायित्वों को समझ रही है ? क्या वो बुजुर्गो के प्रति समर्पित है ? क्या वजह है की आज दुसरा गाँधी फिर ना हो सका ? युवा पीढ़ी को क्या चिंतन नहीं करना चाहिये ? क्या हम अपनी बुजुर्ग हो चली पीढ़ी के प्रति विनम्रता नहीं अपना सकते ------? जरुर वो सुबह आएगी !एक समग्र समर्पन बुजुर्गो के प्रति जो आप में है !
उन्हें आप के वैभव की नहीं आप के सम्मान की जरुरत है और ये शायद उनका अधिकार भी !
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------रविन्द्र
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