लम्हों - पलों का क्या जिक्र करू मै
सदियों को भी जी आया -------
श्वेत वस्त्र में लिप्त तन
स्पंदित होता है मन
फिर बहते अहसासों के बीच कही में
सदियों को भी जी आया ---
मंचो के गिरते पर्दों -ओ -पुलकित तन -मन----- पर
विचलित अद्भुत मर्म के मध्य
स्वप्न खुले तो देखा फिर
सदियों को मै जी आया -----
चेतन मन फिर ---
अंतस की वेदना क्यों ये सहता है ---
चन्दन की खुश्बू-ओ -नागफनी के संग .
अमलतास वाही पर खिलता है ----
देखो मित्रो ये सच है की ---
वर्तमान की डोर पकड़ मै ---
सदियों को भी जी आया ---
मै सदियों को फिर जी आया -------
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