भारतीय समाज का यथार्थ वादी चित्रण करे तो पता चलता है की आज समाज में महिलाओं की दशा और उनकी मानसिक , सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति वास्तव में चिंतनीय है ---कल दोस्तों के बीच चर्चा चल रही थी की क्या हमारी महिला , बेटियाँ इस नवनिर्मित भारतीय समाज में पूरी तरह सुरक्षित है --------? कई बिंदु उभर कर सामने आये वाद -प्रतिवाद -और संवाद के उपरान्त चकित करने वाला जो तथ्य उबर कर सामने आया वो काफी चिंतनीय था हमारा पुरुष प्रधान समाज आज भी इस अतिआधुनिक मानसिकता के बीच सोचने को तैयार नहीं की समाज में आज महिला आगे बढने को तैयार है ....आज भी उसका काम मात्र घर की चार दीवारों में केद काम करने वाली एक कुशल दासी से अतरिक्त कुछ नहीं ... नित्य नवीन आयामों को रचने वाली चारो दिशाओं में अपनी प्रखर सोंच की क्रान्ति दूत महिला जो वात्सल्य और गरिमा के अद्भुत प्रतीक है उसके प्रति हमारा ये नकारात्मक नजरिया ? विचारणीय यह है चर्चा किसी ग्राम में ना होकर प्रभ्बुद समाज के चिंतन पटल के स्तंभों के बीच ..... मन असहज महसूस करने लगा पुनः आत्म चिंतन के आवश्कता महसूस होने लगी ...बीज का अंकुरण होना था ....निष्कर्ष निकालने के लिए आप का सहयोग चाहिये .........क्या हम नारी मुक्त समाज की संरचना में अपने नपुंसक हो चुके समाज के चेतना में परिवर्तन कर सकेंगे यदि है तो कैसे ? इसकी पसंगिकता कितनी अनिवार्य है और क्यों ? क्या हमें एन थोती वा सामंतवादी परम्पराव का निर्वाहन करने में अपना समय नष्ट नहीं करेंगे ....? वो सुबह कब आएगी जब अपने पूरे देश में महिला पूरी सुरक्षा महसूस करेगी उनको पूरा सम्मान मीलेगा वा अधिकारों के लिए संगठनों या अभयानो की सहायता न होगी ,,,, बाल विवाह लिंग हत्या , विदवा विवाह के बारे में लोग अनुचित नेत्रों से देखना बंद कर देंगे ..... एक सफल प्रयोग की आशा में ----------
Thursday, May 26, 2011
भारतीय समाज
भारतीय समाज का यथार्थ वादी चित्रण करे तो पता चलता है की आज समाज में महिलाओं की दशा और उनकी मानसिक , सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति वास्तव में चिंतनीय है ---कल दोस्तों के बीच चर्चा चल रही थी की क्या हमारी महिला , बेटियाँ इस नवनिर्मित भारतीय समाज में पूरी तरह सुरक्षित है --------? कई बिंदु उभर कर सामने आये वाद -प्रतिवाद -और संवाद के उपरान्त चकित करने वाला जो तथ्य उबर कर सामने आया वो काफी चिंतनीय था हमारा पुरुष प्रधान समाज आज भी इस अतिआधुनिक मानसिकता के बीच सोचने को तैयार नहीं की समाज में आज महिला आगे बढने को तैयार है ....आज भी उसका काम मात्र घर की चार दीवारों में केद काम करने वाली एक कुशल दासी से अतरिक्त कुछ नहीं ... नित्य नवीन आयामों को रचने वाली चारो दिशाओं में अपनी प्रखर सोंच की क्रान्ति दूत महिला जो वात्सल्य और गरिमा के अद्भुत प्रतीक है उसके प्रति हमारा ये नकारात्मक नजरिया ? विचारणीय यह है चर्चा किसी ग्राम में ना होकर प्रभ्बुद समाज के चिंतन पटल के स्तंभों के बीच ..... मन असहज महसूस करने लगा पुनः आत्म चिंतन के आवश्कता महसूस होने लगी ...बीज का अंकुरण होना था ....निष्कर्ष निकालने के लिए आप का सहयोग चाहिये .........क्या हम नारी मुक्त समाज की संरचना में अपने नपुंसक हो चुके समाज के चेतना में परिवर्तन कर सकेंगे यदि है तो कैसे ? इसकी पसंगिकता कितनी अनिवार्य है और क्यों ? क्या हमें एन थोती वा सामंतवादी परम्पराव का निर्वाहन करने में अपना समय नष्ट नहीं करेंगे ....? वो सुबह कब आएगी जब अपने पूरे देश में महिला पूरी सुरक्षा महसूस करेगी उनको पूरा सम्मान मीलेगा वा अधिकारों के लिए संगठनों या अभयानो की सहायता न होगी ,,,, बाल विवाह लिंग हत्या , विदवा विवाह के बारे में लोग अनुचित नेत्रों से देखना बंद कर देंगे ..... एक सफल प्रयोग की आशा में ----------
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment