गोधुली बेला पर
बैठे - बैठे ये ख्याल आया
अर्थ हीन शब्द बन भटकते
सूखे पत्तो के बीच
एक गुमशुदा ख्याल आया
एक दिव्य किरण की भाँती
गोधुली बेला पर तुम्हारा आना
एहसासों का बहना
फिर बहक बहक जाना
अन्नंत गहराई लिए
फिर
नयनो से
विचार प्रचित का चुनना
आशाओं की किरणों से
एक अर्पण माला बुनना
फिर सीमा पर किरणों की
होकर हताश बुझ जाना
हमने सिखा है प्रिये ----
गोधुली बेला पर
चल - चल कर रूक जाना !
-------------Ravindra
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