Tuesday, July 5, 2011

रेतीले पहाड़


रेतीले पहाड़ और 
पानी की चाहत 
दरकते हिम खंड और 
पिघलते  हम - तुम 
बंजर जमीं और 
लहलहाते खेत 
मुझे आज भी 
आंदोलित करते है ---
हर फिजा में अब 
मेरी साँसे भी रूकती नहीं 
पाँव भी थकते  नहीं 
आह भी थमती नहीं 
हाथ भी उठते नहीं --
सुर्ख  आँखों में 
सुरमई ख़्वाब 
मुझसे मेरी 
जमी की पहचान 
पूछते  है ---------?

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