Friday, July 1, 2011

वृद्ध

वृद्ध आश्रम की जर्जर 
वीथिकाओ में -----
भटकता फिरता  हूँ 
फिर ---
अपनी नियत पर 
रोता हूँ ------
शहर में आयोजित 
वृद्ध आश्रम
 स्थापना दिवस पर 
सभी वक्ताओं ने 
अपने मुह खोले 
खूब बोले ----
क्रान्ति कारी नारों -ओ-
उद्घोषो के बीच
मैंने भी केचुल उतारी 
संपन्न -विनम्र-और 
आभिजात्य होने का 
स्वांग ओढा ---
ऊऊफ़्फ़्फ़ -----
गर्त में सिसकन की गंध 
शब्द फिर कुछ 
ना बोला -----?
महसूस किया 
हसना ---चीखना फिर रोना ----
मंथन की सतह पर 
वृद्ध  ----
मै आज फिर 
वारिसो के बीच 
लावारिस का 
दंस झेलता हूँ ----
जी हाँ 
मै गुजरा कल हूँ 
जो वर्तमान की 
कब्र पर 
खुद पुष्प 
अर्पित करता हूँ -------!!!!!!



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