Saturday, July 2, 2011


काली होती शाम  और 
पानी का वो बरसना 
बिजली का चमकना और 
तुम्हारा लिपटना 
याद है मुझको 
तुम्हारे 
हर एहसास को 
जीता हूँ
आज भी 
महसूस करता हूँ 
सब कितना 
अपना 
और 
अपना था वो 
अचानक सफ़र कब ख़त्म हुआ 
पता ही नहीं चला 
आज हम 
अपना-अपना कोर्स 

अपना-अपना दायरा

अपना-अपना भविष्य

फिर
वो यादे -----
बारिश में आज भी वही खडा हूँ 
सब कुछ है 
पर वो एहसास नहीं 
ऐ बरखा अब ना आया करो ------
मुझे अब स्मृति 
पसंद है -----!!!!!

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