Monday, July 11, 2011

चीख


चीख-----
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खामोश  होती चीख का शून्य
बहुत कुछ कह रहा है 
अपनी व्यथाओ को सह रहा है 
जी हाँ 
उचित है 
खामोश  होना 
चीखना --चिल्लाना फिर रोना 
सच मानिए जब आप रोयेंगे 
बहुत कुछ खोएंगे 
सिसकती कृतिमता पास पायेंगे 
बहुत कुछ 
सह  जायेंगे 
पी जायेंगे 
व्यथाओ का वो हाला भी 
पर अपनी व्यथाओ को 
ना भूल पायेंगे 
स्वयं उसे सहलायेंगे 
अच्छा लगता है 
स्वयं द्वारा सहलाना 
अपनी व्यथाओ को 
दुलराना ---
कोई कृतिमता तो ना होगी 
सिसकती मानसिकता 
तो ना होगी ---
सिर्फ 
एक क्रुन्दन  भरी 
चीख सम्पूर्ण 
अंतस में समा जायेगी 
अपनी व्यथाओ को गढ़ जायेगी 
इंतज़ार करेंगे फिर 
उस उठती हुई 
चीख का 
जो अंत में 
खामोश होती चीख का 
शून्य बन जायेगी -----
शून्य बन जायेगी -----!!!!!!!!!!

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