जीवन के इन झंझावातो में
मेने भी कुछ देखा है -----
पुलकित मन और सुंदर तन
जब वो आया मेरे द्वार ---
हमने भी फिर
खंडहरो में -----
थिरकन सा कुछ देखा है -----
कोन कहता है की
मानवता थी जो मर गयी
हमने तो सुंदर उपवन में
मयूर नाचते देखा है -----
सच है दुनिया वालो ---मृगतृष्णा
के मध्य वही---उजली धूप
घिरते बादल
पानी की धार और
रोटी की वो मार ---
फिर भी ---
हमने मानवता को
उससे लड़ते देखा है -----
एक प्रशन फिर उठता है
आँखों का जंगल बढ़ता है -----?
अंतस की आवाज फिर ये
उभर -उभर के आती - है -----
ऐसी मानवता में फिर
रहने का क्या मतलब
जहां कफ़न की छत पाने
मानवता फिर लडती है ----
देखो ये भी सच है यारो-
हमने ---मानवता को भी
दीवारों पर
मरते देखा है -------??????
मेरे अन्दर का द्वंद जब
बहुत अधिक टकराता है
ये सच है यारो ----
मानवता को भी ---घुटते -ओ -
बहते फिर देखा है ----------???????
हमने देखा है प्रिये -------मानवता को
लड़ते हुए--------घायल और लाचार
मगर फिर भी
ना जाने क्यों ---?
हमने आज फिर
ये अंदाज -ए- जहां
फिर देखा है ------!!!!!!!
No comments:
Post a Comment