इन्कलाब का सेलाब
और
मेरी चेतना
कभी एक न हो पायी
नये नारों का सर्जन तुम
भीरु होते हम
तुम उदघोशो की बात करते
हम उद्गम की ----
विचार हिन् बकवास
तुम करते
अंत हिन् सफ़र हमको कहते ---
अचेतन जब
चेतन पर हावी
होती
तब तक
हम विराम हो चलते
दिशा हीन सफ़र
अंजाम का परिणाम
हम फिर -फिर वापस आते ----
इसे में क्या कहू ---?
तुम्हे प्रणाम ----!!!!!!
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