एक दिन तुमने कहा था ---
तुम मानव नहीं पाषाण भले थे
मै अनुतरित हो गया था
काल के इस
प्रशन से ----
ये सच है
वो घनी भूत पीड़ा थी
मेरा पाषाण होना --फिर रोना ---
तुम ना जाने कहाँ से आई
मुझे सहलाया ----मेरे विवेक को बताया
पाषाण कहने वालो
देखो आज मै
मंदिरों में पूजा जा रहा हूँ ---
तुमको मेरा प्रणाम !!!!!!!!!
bahoot khub...!!!!
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