शांत जल में
फेंका गया कंकड़
तरंगित लहरे
उलासित मन--
तीव्र वेग
चंचल चिन्तन
सब कुछ है आज
पर प्रिये ----
वन्दे मातरम
की वो गूंज
आंदोलित करती
कविता ---
ख्यालो की कब्र गाह
और मेरा समर्पण
दिवा स्वप्न की भाँती
मुझमे
दफ़न हो गया है --
भीरु आवरण में
आज ---अपना अक्स
चटकता हुआ देखा है मेने ---
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