म्रिदंग की गूंज
सावन में मोर का नृत्य
और पपीहे -ओ -कोयल की
कूक ------
मुझे आंदोलित करती है ---
मुझको ये भी पता है कि
साथी --तेरा नाम अलग है ---
साथ है फिर भी राह जुदा है ---
धरती का दरकना और
आसमान का बाहे फेलाना
एक छलावा है -----
आँखे होठो कि बात क्यों समझे ----
जबकि ---
दिन से रात जुदा है ------
कहने को तो
अब कुछ भी नहीं ---
वक्त हो गया ---
सोये हुए मुझे ----
लगता है कि ---
सदियों से बरसात अलग है -----
लम्हों -पालो क्या
जिक्र करू अब ---
बीमार रूह का बोझ बड़ा है -----
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