हिम खंडो का पिघलान
और
बरसता पानी ------
रवि की तपन
और
गिरती वाणी
कभी एक न हो
पायी --------
छल से छलना
फिर आरोपों का
मढना -----
कभी एक ना हो
सका ------
संयोजन का प्रयास
फिर ---
दर्द का
उभर --आभार आना
मात्र संयोग नहीं
घिरते बादल और
झूमते सावन
आह्लादित मन और
स्थिर तन ----
कभी एक ना हुआ -----
तुम्हारा आना और
मेरा जाना
कोई नई बात नहीं ---
छड भंगुर जीवन की
यही निशानी
कही
आक्रोश तो कही
है पानी --------
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