जर्जर होती मानसिकता
और
हम -तुम
अंत हीन बकवास
और ------
सिंहासन की बात ----
दर्शन और आयामों के बीच
कही जब
ये बेहया शब्द
टकराते है ---सच है चिंतन
फिर कही
चिर जीवित चिर
नूतन सा हो जाता है ----
तब शब्द नहीं ----
अभिव्यक्ति नहीं
तो मजबूरन
कफ़न की छत
पाने मानवता लडती है -----
तब ऐसे परिवेश में जीने का
फिर क्या मतलब ---
जहां ----मर्यादा
.को तलवार
उढानी पड़ती है ------
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