तुम आशा
और
विश्वास की
बात करते हो
हम निष्ठा से बंधे है
तुम आध्यात्मिक हो
हम व्यवहारिक है
इस धरा पर
क्या मिलना संभव है ----?
आध्यात्मिक कभी
व्यवहारिक नहीं
हो सकता -------
और व्यवहार कभी
आध्यात्मिक नहीं ---
मंथन की सतह पर
आज फिर निष्ठा और
आशा और विश्वास
सामने कुरु छेत्र का
आभास दे
रहे है ----------
गीता क्या कहती है ---?
संतुलन के बीच
आम हो चला "मै"
सत्य का
कर पाता -----
हे प्रभु तुमको
प्रणाम !!!!!!!!!
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