Saturday, July 23, 2011

रुसवाई


मेरी गूंगी चाहत  आज फिर 
रुसवाई की चादर पहन कर जब
खुली छत पर टहलती है कही 
चाँद चांदनी की आगोश में छुप जाता है 
सावन मोसम को भिगोता है और तब 
तुममे माशुका मुझे नजर नहीं आती  है 
हुजुमे -अपाहिज (अपाहिजों का समूह )
सितारों में हम कही खोजते है तुम्हे --
सूरज की रुपहली किरणों को खोलते है कही --
सच है मै अचानक --सहम सा फिर जाता हूँ --
इन्तजारे मुजस्सम (साकार प्रतीक्षा )
के ख्याल में हम फिर दोजख से तब गुजर -गुजर 
जाता हूँ---------गुजर गुजर जाता हूँ -----!!!!!!!!!

1 comment:

  1. Deepak Bhatty, Satpal Choudhary Kaswan, Shailesh Dwivedi और 10 अन्य को यह पसंद है.

    Jitendra Pandey वाह शुक्ला जी वाह ! लजबाब !
    शनिवार को 10:04 बजे · पसंद करें
    Ravindra Shukla aabhar pandey ji
    शनिवार को 10:04 बजे · पसंद करें
    Ravindra Shukla amit bhaai --ek anubhuti hai ----aabhaar aap kaa..
    शनिवार को 10:04 बजे · पसंद करें · 2 लोग

    Manoj Kumar Bhattoa wah ! bahut khoob...
    शनिवार को 10:09 बजे · पसंद करें · एक व्यक्ति
    Ravindra Shukla aabhar manoj ji ----samartrha karne kaa ---
    शनिवार को 10:10 बजे · पसंद करें · एक व्यक्ति

    Ritu Basant बहतरीन अभिव्यक्ति
    शनिवार को 14:46 बजे · पसंद करें
    Ravindra Shukla aabhar ritu ji ---
    शनिवार को 14:47 बजे · पसंद करें · एक व्यक्ति

    Amit Gaur Tum lakh chupao seenay mein ehsas hamri chahat ka, Dil jad be tumhara dharka hai awaz yahan tak aii hai...
    शनिवार को 14:57 बजे · नापसंद करें · एक व्यक्ति

    Ashish Tandon वाह क्या बात है बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
    शनिवार को 20:36 बजे · नापसंद करें · 2 लोग

    Avadh Ram Pandey मन आह्लादित हो गया! अति सुन्दर
    शनिवार को 21:09 बजे · नापसंद करें · 2 लोग

    Madan Singh Chouhan बहुत अच्छा ......जी ! कब तक चाहत की रुसवाई से डरेँगे आप ,
    आपकी न सही ,तो शायद कल वो किसी और की चाहत होगी ......!
    शनिवार को 22:25 बजे · नापसंद करें · एक व्यक्ति
    Ravindra Shukla sabhi mitro kaa aabhar ---
    a few seconds ago

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