रेतीले पहाड़
रेतीले पहाड़ और
पानी की चाहत
दरकते हिम खंड और
पिघलते हम - तुम
बंजर जमीं और
लहलहाते खेत
मुझे आज भी
आंदोलित करते है ---
हर फिजा में अब
मेरी साँसे भी रूकती नहीं
पाँव भी थकते नहीं
आह भी थमती नहीं
हाथ भी उठते नहीं --
सुर्ख आँखों में
सुरमई ख़्वाब
मुझसे मेरी
जमी की पहचान
पूछते है ---------?
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