वृद्ध आश्रम की जर्जर
वीथिकाओ में -----
भटकता फिरता हूँ
फिर ---
अपनी नियत पर
रोता हूँ ------
शहर में आयोजित
वृद्ध आश्रम
स्थापना दिवस पर
सभी वक्ताओं ने
अपने मुह खोले
खूब बोले ----
क्रान्ति कारी नारों -ओ-
उद्घोषो के बीच
मैंने भी केचुल उतारी
संपन्न -विनम्र-और
आभिजात्य होने का
स्वांग ओढा ---
ऊऊफ़्फ़्फ़ -----
गर्त में सिसकन की गंध
शब्द फिर कुछ
ना बोला -----?
महसूस किया
हसना ---चीखना फिर रोना ----
मंथन की सतह पर
वृद्ध ----
मै आज फिर
वारिसो के बीच
लावारिस का
दंस झेलता हूँ ----
जी हाँ
मै गुजरा कल हूँ
जो वर्तमान की
कब्र पर
खुद पुष्प
अर्पित करता हूँ -------!!!!!!
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