मेरे अंदर कुछ दरकता है अब
जब मजलूम मजदूर गारा ढोता है
किसान कर्ज के बोझ से रोता है
बेटी के दहेज़ को विधवा माँ सोंचती है
शिक्षा संस्कारों को खोती है ---------
कवि कविता में विचार खोजता है
चिन्तक असंयमित होता है -----
बच्चा रोटी को रोता है -----------
सच है ---
मुझ में फिर कुछ दरकता है -------------!!!!!
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