Friday, June 3, 2011

बचपन


बचपन की बात करू तो
कविता नहीं बनती ---
जीवन की संध्या में
आग नहीं बसती---
एक कोशिस की बचपन को
जीने की -------
पर अब देखो वो बात
नहीं बनती ---------
खजाने की वो खोज
अब याद नहीं बनती ---
लेकिन ये सच है यारो
चाहत चाँद को पाने की
बचपन को ले आती है ---
पर घर के वो आँगन में वो
रार नहीं मचती -----
नानी की कहानी
वो परियो का फसाना
देखो अब तो  जीवन
में वो बात नहीं होती ------
आज देखा तो पाया ----
बचपन कितना सुहाना होता है
न कोई दुखड़ा न कोई बेगाना होता है
परियो का देश ----और
बहन की गुडिया की सगाई -ओ -शादी
मेरा पंडित बनना सब
जबरन होता है ------
बेवजह रोना ----
फिर चुटकी कटवाना
बहनों का प्रिय खेल होता है --
-केंद्र में बसा मै---
माँ का दुलराना
पिता का कान खीचना
और भाई का मरहम लगाना ---
साइकिल  को चलाना ---
फिर गिर -गिर जाना
बहनों का हंसना
भाइयो का चिढाना
सब कुछ था पर अब
सब सूना -सूना सा है ------.मित्रो ----
बचपन गम से अनजाना
एक सुंदर फसाना होता है
ता उम्र
भागता रहा बड़ा होने के लिए
पर ये ही सच है यारो
प्रिय विजया के द्वारा दिए गये विषय के संदर्भ में ----
बचपन बहुत
सुहाना होता है --------...

1 comment:

  1. बचपन गम से अनजाना
    एक सुंदर फसाना होता है
    ता उम्र
    भागता रहा बड़ा होने के लिए....bahoot sunder chitran

    ReplyDelete