Saturday, June 25, 2011

जर्जर  होती मानसिकता 
और 
हम -तुम 
अंत हीन बकवास 
और ------
सिंहासन की बात ----
दर्शन और आयामों के बीच
कही जब 
ये बेहया शब्द
टकराते है ---सच है चिंतन 
फिर कही 
चिर जीवित चिर 
नूतन सा हो जाता है ----
तब शब्द नहीं ----
अभिव्यक्ति नहीं 
तो मजबूरन 
कफ़न की छत 
पाने मानवता लडती है -----
तब ऐसे परिवेश में जीने का 
फिर क्या मतलब ---
जहां ----मर्यादा 
.को तलवार 
उढानी पड़ती है ------

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