Tuesday, June 28, 2011

ढोल की थाप 
म्रिदंग की गूंज 
सावन में मोर का नृत्य 
और पपीहे -ओ -कोयल की 
कूक ------
मुझे आंदोलित करती है ---
मुझको ये भी पता है कि
साथी --तेरा नाम अलग है ---
साथ है फिर भी राह जुदा है ---
धरती का दरकना और 
आसमान का बाहे फेलाना 
एक छलावा है -----
आँखे होठो कि बात क्यों समझे ----
जबकि ---
दिन से रात जुदा है ------
कहने को तो 
अब कुछ भी   नहीं ---
वक्त हो गया ---
सोये हुए मुझे ----
लगता है कि ---
सदियों से बरसात अलग है -----
लम्हों -पालो क्या 
 जिक्र करू अब ---
बीमार रूह का बोझ बड़ा है -----

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