Friday, June 17, 2011

मानवता

जीवन के इन झंझावातो में 
मेने भी कुछ देखा है -----
पुलकित मन और सुंदर तन 
जब वो आया मेरे द्वार ---
हमने भी फिर 
खंडहरो  में ----- 
थिरकन सा कुछ देखा है -----
कोन कहता है की 
मानवता थी जो मर गयी 
हमने तो सुंदर उपवन में 
मयूर नाचते देखा है -----
सच है दुनिया वालो ---मृगतृष्णा
के मध्य वही---उजली धूप
घिरते  बादल 
पानी की  धार और 
रोटी की वो मार ---
फिर भी ---
हमने मानवता को 
उससे लड़ते देखा है -----
एक  प्रशन फिर उठता  है 
आँखों का जंगल बढ़ता है -----?
अंतस की आवाज फिर ये 
उभर -उभर के आती - है -----
ऐसी मानवता में फिर 
रहने का क्या मतलब 
जहां कफ़न की छत पाने 
मानवता फिर लडती है ----
देखो ये भी सच है यारो-
हमने ---मानवता को भी 
 दीवारों  पर 
मरते     देखा है -------??????
मेरे अन्दर का द्वंद जब 
बहुत अधिक टकराता है 
ये सच है यारो ----
मानवता को भी ---घुटते -ओ - 
बहते  फिर देखा है ----------???????
हमने देखा है प्रिये -------मानवता को 
लड़ते हुए--------घायल और लाचार 
मगर फिर भी 
ना जाने क्यों ---?
हमने आज फिर 
ये अंदाज -ए- जहां 
फिर देखा है ------!!!!!!!

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