Tuesday, August 2, 2011

उल्का --


उल्का ----
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मुझे आज चाँद में मोजूदगी का एहसास होता है कही 
कल आसमान में उल्का पिंडो की बरसात देखि है वही
नजरे इनकार करती थी पर दिमाग देखता है कही ---
मुझे पता है दुन्धले परिवेश में आज आतिशबाजी -----
फिरका परस्ती लगती है ---तुम्हे पर ये सच है की 
उन्मादी ख्यालो में ये आतिशबाजीबहुत कम है लोगो  
चाहत है कुछ एसा कर जाऊ -----आतिशबाजी उम्मीदों से 
 ऐतिहासिक भी ना हो और दीवानगी भी दिख जाए -------

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