Tuesday, August 2, 2011

मुसाफिर

मुसाफिर 
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मुसाफिर लगता हूँ आज 
सफ़र अनजान मन बेखबर 
डगमगाते कदम और बेचारगी 
रास्ते पथरीले , बोझिल तन -मन 
अंत हिन् सफ़र और मंजिल बहकी सी 
हाथो के आयतन अब कमजोर हो चले है 
मुझे मंजिल नहीं   ---अब रास्ते दिखते है -----

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