Wednesday, August 24, 2011

लोकतंत्र

लोग कहते है की उड़ने के लिए पंख की नहीं होसले ही काफी होते है ----हम भी काफी प्रभावित हुए इन शब्दों से ----मित्रो के बीच मंथन   के दोरान मुझे आभास हुआ की आज क्या हम लोक तंत्र में जीवित है ----ये अपने में ही एक अहम् प्रशन है ---हम लोकतंत्र की परिभाषा सही अर्थो में जानने का प्रयास कर रहे है ---आज मुझे देश में वंश वाद दिख रहा है ---क्या कारण है हम प्रबल व्यक्तियों को चुन नहीं पा रहे है ---? क्या राज वंशो को समय फिर से प्रमुख हो रहा है ---हम इतने कमजोर तो नहीं थे ---जिनकी हुंकार से विदेशी देश छोड़ कर भाग गए वही चंद जय चन्द्रो के कारण हम फिर गुलामी भोग रहे है ---ये कब तक ---क्या चिंतन पटल पर प्रभुध वर्ग नपुंसक हो गया है ------? हम क्यों सो रहे है -----? मुझको लगता है की लोक तंत्र को नई परिभाषा देने का वक्त आ गया है ---जय हिंद ---

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