Saturday, August 27, 2011

आवाम की आवाज़


आवाम की आवाज़ 
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लखनऊ ----बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले ---बचपन में कभी निबंध लिखा था ----का वर्षा  जब कृषि सुखानी ----आज जब देश के हालत देख रहा हूँ तो अतीत की कुछ यादे ताजा हो रही है ---हम स्वतंत्रता आन्दोलन की बाते बड़े चाव से पढ़ते और सुनते थे ---उस समय अधिक ज्ञान नहीं था --पर लगता था ही हमें आजाद कराने में लोगो ने बहुत प्रयास किये --फिर कही हम आजाद हो पाए ---आज जीवन के इस अवस्था में भी हम प्रश्नों के साए में खड़े खुद को पाते है ---क्या हम सही आजादी पा सके है ---? क्या हम लोकतंत्र में आजाद सांस ले पा रहे है ---? जहां विचारों का सम्प्रेषण करने के लिए एक व्यक्ति १२ दिनों से भूखा बेठा है और हमारे चुने  प्रतिनिध एवं सरकार --लगभग सभी चिन्तन शील पटल अभी तक खामोश ----मूक --ये क्या त्रासदी से कम है ---मुझे आक्रोश है व्यवस्था से अपने उन साथियो से जो लोकतंत्र को भाषित नहीं कर पाए -----क्या हम सांसदों को अपनी आवाज़ के रूप में नहीं भेजते है ---वो संसद के पटल को इतना क्यों उलझा देते है की सकारात्मक बात अपना अस्तित्व खोने लगती है ----अन्ना जी के मुद्दे में मुझे अपने जन प्रतिनिधियों की ये प्रतिक्रिया समझ में नहीं आ रही है ---ये लोकतंत्र के ताबूत में अंतिम कील जड़ने का काम कर रहे है ----आम आदमी जिसे नियमो का ज्ञान नहीं वो क्या करे ---संसद सबसे उपर होती है आम व्यक्ति की अपनी स्वतन्त्रता  अभिव्यक्ति से भी बड़ी  ये बात आवाम क्या जानती है ----? क्या सामान्य व्यक्ति अपनी बात को बताने के लिए पहले नियमा वली पढ़े ---८५% आवाम आज ग्रामीण  है ---जिस देश में शिक्षा  का स्तर काफी गिरा हुआ है वहां नियमा वली की बात बेमानी है ----आप चर्चा करो और खूब करो --पर इतना देर मत करो की देश अपने किसी भी नागरिक को खो दे ---मुझे ये सही नहीं लगता ----? आज तमाम राजनेतिक पार्टी बड़े -नारों और आदर्शो आयामों ---नेतिकता की बात करती है --सरकार प्रशासन नसीहते देता है --वही एक आम व्यक्ति की आवाज़ में हम जानना  चाहते है की आज हम क्या खो रहे है ==और किस कीमत पर ---देश जो कभी सोने की चिड़िया कहा  जाता था आज हर बच्चा जब जन्म लेता है वो भारी कर्ज में डूबा हुआ है --आखिर क्यों ---? क्या हमें अपने संसाधन पर विचार नहीं करना होगा ---मात्र बिल पास  करना हमारा मिशन नहीं मूल स्वरुप को बदलना उद्ददेश होना चाहिए ----गिरता आदर्श वाद --गिरती मानसिकता ये सब क्या है ----हम पर केपिटा इनकम केसे बढाये ये सोंचने की जगह एक नेक विचारों को दबाने का काम नहीं कर रहे है -----? क्या गलत कहा अन्ना जी ने देश को सही मायने में आजादी अभी नहीं मिल पायी है ---हमें आवाज़ उठानी होगी ==पंगु व्यवस्था के प्रति -------आम स्तर पर रोटी -कपड़ा और मकान की चाहत हर नागरिक का अधिकार है और वो मिलना चाहिए ---हमें सरकार और प्रशासन ---सभी सांसदों से ये आशा है की वो देश के प्रति निष्ठा रखते हुए बिना अड़ंगे के अन्ना के विधेयक को अविलम्ब लागू करे --वा सकारात्मक समाज की संरचना में सहयोग दे ---सभी का आभार -----जय हिंद ---जय भारत --- 

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