Thursday, August 25, 2011

अन्ना जी का जन आन्दोलन

अन्ना जी का जन आन्दोलन और हमारा समर्पण --------मित्रो बड़े शर्म की बात है की हम एक ऐसे लोकतंत्र में रह रहे है जिसमे वंश वाद की परम्परा दिखती है ---जन आक्रोश के लिए आज कोई स्थान नहीं है सरकार के पास -----एक व्यक्ति १० दिन से अनशन पर बेठा है और सरकार के चिंतन पटल पर शिकन भी नहीं ----क्या आज शांत प्रिय आन्दोलन की प्रासंगिकता का कोई अर्थ नहीं है ---किस प्रकार की सामाजिक संरचना ---हम  गुलामो  से बदतर जिन्दगी को ढो रहे है ----आज शान्ति की अपील तो की जा रही है पर --कब तक ---हम सेलाब को रोक सकते है ----हमें संयम से काम लेना होगा -------जन आन्दोलन तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है ---पर हमें अपनी मानसिक मजबूती को दिखाना है ---हम संयमित है ---थे ---और रहेंगे ----दिशा भ्रम उकेरा जा रहा है ---प्रशासन पंगु हो चुका सा लगता है -------महिलाए आक्रोश में डूब गयी है ---मुझे लगता है आन्दोलन और गंभीर होने का संकेत दे रहा है ---लोग पीछे हटने को तेयार नहीं और ये सही भी है ----इतना बड़ा जन आन्दोलन बिना  नतीजे के इतिहास नहीं बना सकता ---हम रोज आन्दोलन को देखते है और महसूस करते है की व्यक्तियों में आक्रोश जबरदस्त चरम पर है --------मुझे कतिपय कुछ चरम पंथी और धार्मिकता कट्टर वादी  लोगो से भी परेशानी है जो इस आन्दिलन को मुख्य mudde से ना  जोड़  कर  उन्माद  (कोमी ) जोड़ रहे है ये उचित नहीं ---आज लोग अन्ना जी को गाँधी  जी के समक्ष  संतुलन  में देख  रहे है ये उचित नहीं ---ये आन्दोलन अलग अस्तित्व के लिए है ----मेरा विनम अनुरोध है की मुद्दों को समझे और अपने विचार दे ---आज साम्प्रदायिक बात नहीं ----भ्रस्था चार को प्राथमिकता देनी है ----सरकार केसी हो इसका भी मंथन करना  है ---बहुत से विषय है --जिन पर स्वस्थ बात की जरुरत है ---आज लोक तंत्र की परिभाषा पर नए  सिरे से विचार की जरुरत है ----जय हो ---जय हिंद ---  

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