Friday, August 5, 2011

नारी

आज जब लिखने बेठा तो लगा की प्रासंगिक होगा नारी चेतना पर लिखना -----एक द्वन्द उभर कर आया क्या और केसे अभिव्यक्ति करू अपने भावो की -----मित्रो की पोस्ट मुझे आंदोलित करती रही ----इस विषय पर लिखने के लिए   ---शब्द  अपना  आकार  लेने  को बैचेन होने  लगे -----और मै खामोश अपनी कलम को गति देने लगा ------आज हम नारी शक्ति और उसकी प्रासंगिकता पर बात ना करके उसके मनोभावों को सांकेतिक भाषा में बताना चाहते है ------हम क्या उनके मानसिकता मात्र चाँद बड़े शहरो  से जुडी नारी तक ही सीमित नहीं कर रहे है -----क्या हम आज मात्र १५% की बात नहीं कर रहे है ----८५% नारियो की क्या व्यथा  है ----उसको क्यों नहीं समझ रहे है ----? हम आधुनिकता को परिभाषित तो कर रहे है पर मानसिक विक्षिप्ता के साथ ---नारी का वो रूप जो हमें सांस्कृतिक दरोहर के रूप में मिला है उसको क्यों नहीं निरुपित करते है ----मुझे पता है की आज समाज नई दिशा में करवट ले रहा है ---हम विकास शील नहीं हुए है ---अभी विकसित अवस्था के प्रथम सोपान पर है ----ये बात हमें समझनी होगी ----नारी का उठान केवल वो पक्ष नहीं की उसकी वेदना ---घुटन ---या संत्रास   को उकेरा जाए ---कई नये आयाम भी है ---एक जागरूक नागरिक के रूप में हमें --सकारात्मक विचार देने का प्रयास  करना क्या जरुरी नहीं ---हम आज नग्न संस्क्रती की बात करते है ---पर गर्भ में जाए तो क्या हम उसके जिमेदार नहीं ---हमें जो विरासत में मिला है हम उसके साथ न्याय कर पा रहे है ---मात्र  नशा करना या आन्दोलन करना या मानसिक विक्षिप्तता को उकेरा जाना सही है -------हम समाज  को वो रूप   दिखा रहे है ---जो नाकाबिले  गिरफ्त है ----
अपनी परम्परा और विरासत के प्रति थोड़े से भी सजग व्यक्ति को बेचैन कर देने वाले ये सवाल आज आग की तराह मेरे मन में दहक रहे है ---ये क्या निर्माण हम से हो रहा है ---? क्या आज हम पूर्वाग्रहों और इतिहास की मोटी समझ के चश्मे को निकाल कर फेंका जाय और एक अधिक परिपक्व और महीन समझ विकसित की जाय पर अमल कर रहे है -----?---मेरा जवाब नहीं में है ----हमें पता ही नहीं हम कितने संपन्न है अपनी विरासत के ----एक प्रशन अक्सर मुझे आंदोलित करता है ---१५ वीं सदी में व्यापार के विस्तार, मानवकेन्द्रित चिन्ता, और चर्च के प्रति असंतोष के उदय के आधार पर ही योरोप आधुनिक होने का दावा करता है, हालांकि योरोपीय आधुनिकता के सबसे पहले पैरोकार मार्टिन लूथर, यहूदियों को नदी में डुबा देने की भी बात भी अपने आधुनिक सुर में करते जाते हैं। तो उस से कहीं अधिक विकसित चेतना और मूल्य बोध के होने के बावजूद कबीर और उनका काल माध्यकालिक क्यों कहलाता है?---हम आधुनिकता की परिभाषा किस रूप में निरुपित करते है -----हमारे समाज की बहुवचनात्मकता को केन्द्रीकृत शास्त्रीयता में बदलने का उपक्रम किया गयाऔर किया जा रहा है मुझे आपत्ति है ---?----मित्रो भारतीय समाज कोई गतिहीन, जड़ समाज नहीं था वह एक गतिशील, प्रगतिशील समाज था---हम सनातन शांत प्रिय लोग है ---विषय गत बात की जाए तो कहना चाहता हूँ की हम निगेटिव  रूप ना उकेर कर नारी के उज्जवल स्वरुप की बात करे ----
अन्त में अपने नारी संगठनो के प्रति अपना रोष व्यक्त करता हूँ जो दावे  तो बड़े -बड़े  करती है पर मलिन बस्ती मै  जब काम करने जाती है तो नाक पर कपड़ा रख कर ---ये सब क्या है ---? क्या दोहरी मानसिकता नहीं ----? मुझे इन्तजार है उस वक्त का जब नारी khud  अपना विश्लेषण करेंगी ---तब सत्य उजागर होगा --------? सब का मंगल हो -----जय हिंद ---जय भारत -----

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