Tuesday, August 2, 2011

तिजारत


चंद अंगुली हाथ से ---
लिखी  तिजारत आप की  
मन के दर्पण में कही 
कह गये बात आग की 
खो गये सब मर्म जब 
हम खोजते  थे अस्थियाँ
बिखर गयी जिंदगी अब 
पास मेरे सिसकिया ----
रोशनी की जगह  अब 
आह का एक ढेर है ---
मन हो जितना ले चलो 
अब लिख गयी जब ये अंगुलिया ----

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