Tuesday, August 9, 2011

शहीद


शहीद
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प्रश्नों की वेदी पर 
चल चल  कर रुक जाता हूँ 
डरता जब मौत से फिर 
क्यों ये कह जाता हूं -----
दर्द मर्म का जब उभरा तब 
चिंतन को लिख जाता हूँ ----
है व्याप्त चेतना का संचार 
तब ये कह जाता हूँ ------
उठो प्रेम-विरह से अब 
समय तुम्हे खोजता  है 
रक्त जमे इससे पहले 
क्रान्ति पथ खोलता  है 
उम्मीदों  के दिए बुझ ना पाए 
ऐसा कुछ निर्माण करो ---
देश भक्त थे तुम अब मत अभिमान करो 
नमन सब वीरो को जो 
डर ना सके फिर मौतों से 
हम निर्जन महल के बंद कक्ष  
मौत से क्यों  डरे हुए ---?
इतना डर व्याप्त जब तो 
एक सलाह अब देता हूँ 
 वीरो  की कर्म भूमि 
में आगे आओ और चलो 
डर इतना ही है तो फिर 
आओ और शहीद बनो ----
--------------------------(मेरा सादर नमन उन वीरो को जिन्होंने अपने देश के लिए मौत को गले लगा लिया और शहीद हो गये )

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