Thursday, May 26, 2011

भौतिक आचरण


एक आम नागरिक की नजर से देखे तो आज लगता है की  हमारे आती  भौतिक आचरण में गंध आने लगी है. ऐसा क्यूँ ? आज क्या स्त्री अपनी  खोज खुद  नहीं कर सकती ? क्या वो पश्च्यात संस्क्रती के प्रति मोहित तो नहीं हो रही है ?है ! पुरुष प्रधान  समाज में सदियों से दमित स्त्री . सुन्दरता का बाजारीकरण प्रस्तुत कर रही है !--.लड़कियां इस पूरी व्यवस्था में यह भूल जाती है की उनका शारीर बाज़ार में रखी कोई वस्तु नहीं है जिसका उद्देश्य किसी और के आनंद और भोगने का माध्यम है. आधुनिकता में परिवर्तित  होती लड़कियां और उपभोक्ता होते पुरुषों की मानसिकता को बनाने में हम सभी का योगदान है! एस संदर्भ में मेरे विचार कुछ भिन्न है आज हमें कुछ इस प्रकार की सामाजिक संरचना करने की आवश्यकता है जहा नारी खुद अपना मूल्यांकन कर सके !निश्चित ही वो  चिन्तनशील है, विचारवान है, अपनी अस्मिता के प्रति सचेतभी आवश्यकता संगठित हो कर अपनी दिशा तैयार करने की है !



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