Thursday, May 26, 2011

जिन्दगी


जलती बुझती  जिन्दगी में
चाँद तारे सो गये है
दिल भी तन्हा रह गया है
हम सफ़र की चाह में अब
ये जमाना सो गया है
बुझ गयी है रौशनी सब -
अब
जिस्म तन्हा हो गया है
ऐ-मुकद्दर क्या कहू मै---
अब तो --
सिमटा सा मक़ा है
राह देखा जब तलक
पर जमाना खो गया है
रोशनी सब मोजूद है पर
थर थराता सा धुँआ है ---
हम सफर गर मिल भी जाय---
पर बदला सा ठिका है ---
ऐ ----अजीजो अब तो देखो --
ये जमाना सो सा गया है ----------
ये जमाना सो सा गया है -----
ये जमाना सो सा गया है -----

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