Thursday, May 26, 2011

आज का चिंतन


मै तो उलझा रहा उलझनों की तराह -----------
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आज का चिंतन --------
************************ मित्रो आज एक नया प्रयोग देखने में मिल रहा है ----सभी प्रकार से समाज में आज दोहन की प्रक्रिया चल रही है ----जीवन की आधारभूत चीजो से लेकर अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए आज लोग अपनों की मानसिक चेतना का भी दोहन करने में कोई संकोच नहीं कर रहे है ----
तर्क  को कुतर्क  में बदल कर मात्र अपनी योग्यता सिद्ध करने में लोग आज चिंतन का निर्माण नहीं बल्कि एक स्वस्थ चिंतन को बिगाड़ने का काम कर रहे है -------
ये विध्वंस क्यों ----? क्या ये उचित है ----? स्वस्थ सोंच का उदय होना चाहिये पर क्या ये रास्ता उचित है ----?आक्रामक शब्धो से किसी भी विचार धारा को प्रभावित करना क्या न्याय सांगत है -----?एक ग्रुप के रूप में किसी भी विचार धारा का शिकार कर उसे खंडित करना क्या तर्क संगत है ------इस दिशा मे हम उन व्यक्तियों का भी मर्दन करना चाहेंगे ---जो इस प्रकार के कार्यो को मौन रह कर तुष्ठी करण की निति को बढ़ावा दे रहे है ---------
ज़रा सोंचे हमें रचनात्मकता की जरुरत है या नकारात्मक सोंच की -----
आप का चिंतन क्या कहता है ------आप से एक सार्थक पहल की उम्मीद है -----!
---------------------------------------------------------------------------------------------------आप का अपना ही ----रविन्द्र 

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