Thursday, May 26, 2011

उभरे अक्श


हमारे और तुम्हारे  बीच होती
ये अभिव्यक्ति -----
घने कोहरे सी जम गयी है ---
विचारों का टकराव और
सतह का ठराव -----
फिर आत्म मंथन ---??????
विद्रोही दह्म्भी सोंच या
संकल्प की कमी -----
परिणाम का इन्तजार या लोलुप मन ----
निष्कर्ष का अंतिम डोर में ----फिर रुक -रुक कर
आगे जाना ----
प्रिये ये मै नहीं
मेरा भीरु द्वन्द है-----
तम्हारे उभरे अक्श को नमन !!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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