Thursday, May 26, 2011

आज का चिंतन


मै तो उलझा रहा उलझनों की तराह -----------
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आज का चिंतन --------
************************मित्रो  कल अचानक कुछ पढ़े -लिखे लोगो से बात करने का अवसर मिला ---वो सभी युवा वर्ग के लोग थे ---शहर में टेक्नीकल शिक्षा हेतु दाखिले के संदर्भ में आये थे ---बातो -बातो में चर्चा चली ---शिक्षा और उसके वर्तमान स्वरुप की ---सभी युवको ने दार्शनिक अंदाज में अपने वक्तव्य जारी किये ---मुझे अच्छा लगा ---लगा की शिक्षा के प्रति सरकार का योगदान सार्थक है ---एहसास हुआ की हम सही निर्माण में है ---स्थान के आभाव में उन लडको ने मुझसे कहा की यदि आप आज्ञा दे तो प्रवेश फ़ार्म आपके आफिस में रुक कर भर ले  ---मैंने अपनी स्वीक्रति दे दी ---
लोग अपने फ़ार्म भरने लगे -----अनायास मेरी नजर  उन के फ़ार्म पर गयी ---लगभग सभी लोग शब्दों का उच्चारण तो सही कर रहे थे किन्तु लिख गलत रहे थे ---मुझे  आभास हुआ की उनका शब्द ज्ञान तो सही है किन्तु लिख नहीं पा रहे है ---मेने कुछ  को सही दिशा देने का प्रयास भी किया --किन्तु मन में एक विचार उठा क्या हम सही शिक्षा का निर्माण नहीं कर पा रहे है ---? क्या हमारे शिक्षक गुरु अक्षर ज्ञान देने में नाकाम है ----? क्या सरकार का यही दायित्व बोध है -----? शिक्षा सिर्फ सर्टिफिकेट की जरुरत रह गयी है -----?
इतना धन खर्च करने के बाद भी हम अशिक्षितों को भांति शिक्षित हो रहे है ----- इसके मूल में क्या है -----?
हम  क्या सही दिशा का निर्माण कर रहे है ----शायद नहीं -----? मेरा अनुरोध अपने शिक्षा गुरुओ और तमाम उन लोगो से है की शिक्षा का प्रचार -प्रसार सही दिशा में करे ------?
हम सतही सामाजिक संरचना में अपना समय खराब ना करे ---- आप भी अपना एक प्रयास इस दिशा में जरुर करे --- आज शिक्षक को शिक्षा के स्वरुप को बदलने की जरुरत है -----
--------------------------------------सब का मंगल हो -----आप का अपना ही -----रविन्द्र   

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